Old Pension Scheme: 1 जनवरी 2004 को, सरकार ने आर्थिक बोझ कम करने के उद्देश्य से पुरानी पेंशन योजना (OPS) को बंद कर नेशनल पेंशन सिस्टम (NPS) लागू किया। पश्चिम बंगाल को छोड़कर सभी राज्यों ने इसे अपनाया। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में कर्मचारियों ने इस नई व्यवस्था के खिलाफ आवाज उठाई है, जिसके कारण कई राज्यों ने OPS को फिर से लागू करने की दिशा में कदम उठाए हैं।
OPS और NPS में मुख्य अंतर
पुरानी पेंशन योजना (OPS)
- कर्मचारी का न्यूनतम 7% अंशदान (GPF के रूप में)
- सरकार द्वारा ब्याज की गारंटी
- रिटायरमेंट पर अंतिम वेतन का 50% पेंशन के रूप में
- पेंशन में नियमित वृद्धि और पे कमीशन का लाभ
नई पेंशन योजना (NPS)
- कर्मचारी का 10% अंशदान, सरकार का 14% अंशदान
- शेयर बाजार में निवेश, ब्याज की कोई गारंटी नहीं
- रिटायरमेंट पर 60% एकमुश्त राशि, 40% अनिवार्य वार्षिकी
- पेंशन राशि अनिश्चित और कम हो सकती है
NPS की चुनौतियां
NPS में मुख्य समस्या यह है कि कम सेवा अवधि वाले कर्मचारियों को बहुत कम पेंशन मिल सकती है। कुछ राज्यों में कर्मचारियों को केवल 2000-3000 रुपये की मासिक पेंशन मिल रही है। OPS में न्यूनतम 9000 रुपये पेंशन की गारंटी थी, जो NPS में नहीं है।
सरकार का दृष्टिकोण और संभावित समाधान
सरकार NPS में सुधार पर विचार कर रही है, जिसमें रिटायरमेंट पर 50% पेंशन देने का प्रस्ताव शामिल है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार 30 साल की सेवा के बाद OPS के बराबर पेंशन देने की व्यवस्था करे, तो यह आर्थिक रूप से व्यवहार्य हो सकता है।
राज्यों की भूमिका और चुनौतियां
कई राज्यों में कम सेवा अवधि के कारण NPS के तहत पर्याप्त कॉरपस नहीं बन पाता। इसलिए, राज्य सरकारें अलग-अलग सेवा वर्षों के आधार पर पेंशन का प्रावधान कर सकती हैं, जैसे उत्तर प्रदेश में 20 वर्ष, राजस्थान में 25 वर्ष, और छत्तीसगढ़ में 33 वर्ष।
पेंशन व्यवस्था में सुधार एक जटिल मुद्दा है, जिसमें सरकार और कर्मचारियों के हितों को संतुलित करना चुनौतीपूर्ण है। हालांकि, विशेषज्ञों का सुझाव है कि उचित नियोजन के साथ, सरकार कर्मचारियों को बेहतर पेंशन सुरक्षा प्रदान कर सकती है और साथ ही अपने वित्तीय बोझ को भी प्रबंधित कर सकती है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि सरकार इस मुद्दे पर कैसे आगे बढ़ती है और क्या वह कर्मचारियों की मांगों और आर्थिक व्यवहार्यता के बीच एक संतुलन स्थापित कर पाती है।
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